वायदों से पेट नहीं भरता

वायदों से पेट नहीं भरता,
नारों से देश नहीं बनता।

जनतंत्र का सुनाने से,
जनता का राज नहीं बनता।

परिवर्तन न जाने कब होगा,
कब लोग यहाँ के जागेंगे।

अपने धीरज की कीमत कब,
इन पेटु नेताओं से मांगेंगे।

न हो निराश, न दिल छोड़ो, ऐसा भी इक दिन आएगा।
समय बदलता आया है, समय बदलता जाएगा।

भारत सोने की चिड़िया बन, फिर विश्व गुरु कहलाएगा।

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इस कविता में लेखक ने भारतीय राजनीति की स्थिति और जनता की निराशा को व्यक्त किया है। वह कहते हैं कि केवल वायदे और नारे देकर जनता का पेट नहीं भर सकता और न ही देश को प्रगति की राह पर लाया जा सकता है। परिवर्तन तभी आएगा जब लोग जागरूक होंगे और अपने अधिकारों की मांग करेंगे।

लेखक जनता को निराश न होने का संदेश देते हैं और विश्वास दिलाते हैं कि एक दिन बदलाव जरूर आएगा। समय हमेशा बदलता है और एक दिन भारत फिर से अपनी पुरानी महानता को प्राप्त करेगा और विश्व गुरु कहलाएगा।